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एकादशी भगवान नारायण को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का बड़ा महिमामयी व्रत है. प्रत्येक महीने के हर पक्ष यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधि-विधान से व्रत-पूजा करने वाला प्राणी श्रीहरि को प्रिय होता है.

सृष्टि की व्यवस्था में नारायण पालनहार हैं अर्थात इस सृष्टि का पालन करने वाले. उसी प्रकार हम सभी जीव माता-पिता की कृपा से जन्म प्राप्त करने और फिर पालन-पोषण कर समर्थवान बना दिए जाने के बाद अपने जीवन संघर्ष में जुट जाते हैं.

अब परिवार पालने की जिम्मेदारी आ जाती है. ऐसे में संसार के पालनहार श्रीहरि की शरण लेनी चाहिए. वह हमारा हाथ थामकर हमें कष्टों से निकलने का मार्ग दिखाते हैं. नारद पुराण में आई एकादशी की एक महिमा कथा का आनंद लीजिए.

एक बार की बात है समूचा नरक जैसे सूना हो गया था. यमराज और चित्रगुप्त, दोनों को कोई काम नहीं रहा. जो भी मरकर आता सीधा वैकुण्ठधाम चला जाता.

ऐसे में चित्रगुप्तजी किन के कर्मों का हिसाब रखें और फिर यमराजजी किन्हें और क्या दंड दें!

यह हाल लंबे समय तक चला. बहुत इंतजार के बाद चित्रगुप्तजी से यमराजजी ने मंत्रणा की और निश्चय हुआ कि ब्रहमाजी के पास चलकर समस्या बताई जाए क्योंकि उनकी बनाई व्यवस्था ही बिगड़ रही है.

दोनों ब्रह्माजी की सभा में पहुँचे.

उन्होंने ब्रह्माजी से अपनी परेशानी बताई कि इस तरह चलता रहा तो हमारे पास कोई कार्य ही न रह जाएगा. फिर यमलोक का क्या औचित्य और हमारी क्या उपयोगिता!

ब्रह्मा जी ने पूछा, यह सब कैसे हो गया? मुझे विस्तार से बताओ तो कुछ निदान निकालूं.

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