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उतथ्य ने कहा- हे व्याध! मैंने जिन आँखों से तुम्हरे शिकार को देखा है, वे आंखें बोल नहीं सकतीं और जो जीभ बोल सकती है, उसने सुअर को देखा नहीं. इसलिए मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दूं?
उतथ्य की ज्ञान भरी बात अज्ञानी शिकारी के सिर के ऊपर से निकल गयी. वह निराश होकर वहाँ से लौट गया. सत्यव्रत ने सारस्वत मंत्र का जपकर मां शारदा को प्रसन्न किया और वाल्मीकि के समान विद्वान बने.
उनका यश चारों तरफ फैला तो पिता देवदत्त मनाकर वापस घर ले आए. माता भगवती के आशीर्वाद से मूर्ख उतथ्य को ज्ञान, मान, सम्मान और वैभव की जो प्राप्ति हुई उसे आज भी याद किया जाता है. (देवी भागवत पुराण)
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Your comment..prabhu sharma ji itni sundar kataye gyan vardhak bate aapne ham tak pahuchaya iske liye hum aapka aabhar prakat karte hai ..jai siya ram ji
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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Mujhe Satyavrat ka uttar ati uttam laga. Jai Maa Jagadamba