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मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि इस यज्ञ के परिणामस्वरूप तुम्हारे घर पैदा होने वाला पुत्र महामूर्ख और हठी होगा. गोभिल का शाप सुनकर देवदत्त थर-थर कांपते हुए क्षमा मांगने लगा.
देवदत्त ने कहा- अपराध क्षमा करें. संतान न होने के दुःख में मैं इतना हताश हूं कि भूल गया था कि यज्ञ के लिए आए ऋषिगण साक्षात् देवस्वरूप होते हैं. दया कीजिए इस शाप से मेरा उद्धार कीजिये.
देवदत्त गोभिल ऋषि के चरणों में गिरकर रोने बिलखने लगा तो ऋषि का क्रोध शांत हो गया और वह बोले- मुख से निकले वचन वापस नहीं आते. शाप तो मैं दे ही चुका हूं. वह तो अवश्य सिद्ध होगा.
पर अब मैं यह आशीर्वाद भी देता हूँ कि तुम्हारा पुत्र महामूर्ख होकर फिर विद्वान हो जाएगा. उसमें और भी खूबियां होंगी जिससे वह संसार भर में प्रसिद्ध होगा. उसे स्मरण किया जाएगा.
यह आशीर्वाद पाकर देवदत्त खुश हो गया. यज्ञ के बाद सही समय पर देवदत्त की पत्नी रोहिणी ने सुंदर बालक को जन्म दिया. देवदत्त ने उस बालक का नाम उतथ्य रखा.
थोड़ा बड़ा हुआ उतथ्य तो गुरु के पास भेजा गया. गुरु उतथ्य को खूब पढ़ाते पर उतथ्य एक भी शब्द सही से न बोल पाता. बारह बरस बीत गए पर उतथ्य पहले दिन की ही तरह मूर्ख ही रहा.
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Your comment..prabhu sharma ji itni sundar kataye gyan vardhak bate aapne ham tak pahuchaya iske liye hum aapka aabhar prakat karte hai ..jai siya ram ji
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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Mujhe Satyavrat ka uttar ati uttam laga. Jai Maa Jagadamba