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व्यक्ति हडबड़ाकर जागा. पहले तो उसे यकीन ही न हुआ कि सच में भगवान ने ऐसी प्रेरणा दी है. फिर सोचा कि आजमाने में क्या हर्ज है. क्या पता इससे कोई हल ही निकल आए.

उसने भगवान के आदेश के मुताबिक अपनी सारी परेशानियां अलग-अलग कागजों पर लिखीं. इतनी लिख डालीं कि सच में कागज का ढेर खड़ा हो गया और उसे गठरी में ही बांधना पड़ा.

उसने परेशानियों की गठरी उठाई और चौराहे पर पहुंचा. वहां पहुंचकर वह अचंभे में पड़ गया.

उसने देखा कि चौराहे पर तो पहले से ही लोगों लंबी कतार है जो उसी की तरह अपने-अपने दुखों की बड़ी-बड़ी गठरी लिए आ पहुंचे हैं. आखिर चक्कर क्या है?

अभी वह इन विचारों में ही खोया था कि तभी आकाशवाणी हुई. उसमें सभी को अपनी गठरी को चौराहे पर लगी अलग-अलग खूंटी में टांग देने का आदेश हुआ.

वहां बेहिसाब खूंटिंया पहले से ही बनी थी. सभी ने अपनी-अपनी गठरी टांगी और फिर ईश्वर के आदेश की प्रतीक्षा करने लगे.

कुछ ही देर में फिर से आकाशवाणी हुई. कहा गया कि सभी लोग अंदाजे से कोई ऐसी गठरी उठा लें जो उन्हें अपनी परेशानियों की गठरी से हल्की समझ में आती हो. अब उन्हें वही दुख भोगने होंगे जो उनकी चुनी नई गठरी में दर्ज होंगे.

आकाशवाणी सुनते ही सभी हल्की गठरी को लपकने के लिए दौड़े. सबके साथ वह व्यक्ति भी नई गठरी चुनने भागा.

खूंटियों में टंगी गठरियों को घूंरता हुआ वह काफी देर तक अंदाजा लगाता रहा. उसे डर था कि कहीं वह कोई ऐसी गठरी न उठा ले जिसमें पहले से भी ज्यादा दुख हों. इस तरह तो लेने के देने पड़ जाएं.

गलती से भी उसने यदि किसी ऐसे व्यक्ति की गठरी उठा ली जो उससे भी ज्यादा दुखी हो तो फिर उसका जीवन तो और तहस-नहस हो जाएगा.

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