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इस उत्सव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूरा गांव-समाज भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन धारण की कथा सुनकर आरती करने के बाद एक साथ भोजन करता है.
इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का भी बहुत अधिक महत्व होता है.
गोवर्धन धारण की कथा-
भगवान श्रीकृष्ण की वृन्दावन में लीलाएं चल रही थीं. अपनी लीलाओं से प्रभु अनेक शापित जीवों का जो शापवश वृक्ष और राक्षस आदि बने थे उनका उद्धार कर रहे थे.
प्रभु गाएं चराते थे. वृंदावन के लोगों की आजीविका का सबसे बड़ा साधन पशुधन था किंतु उसका वैसा सम्मान नहीं था जो होना चाहिए. प्रभु ने गोप-गोपियों को सदबुद्धि देने के लिए लीला रची.
गोप इन्द्रोज यज्ञ की तैयारी कर रहे थे. इंद्र को तरह-तरह के भेंट-उपहार अर्पित करने के लिए सारा गोकुल जुटा हुआ था. इस आपाधापी में वे अपने गोधन की भी अनदेखी कर रहे थे. भगवान से यह न देखा गया.
श्रीकृष्ण ने नंदबाबा से पूछा कि यज्ञ क्यों किया जा रहा है. नंद बोले- इंद्र के कारण ही हमें जल और अन्न प्राप्त होता है. उन्हें प्रसन्न करना जरूरी है. वह कुपित हो गए तो बाढ़ या सुखाड़ हो सकता है.
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