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परशुराम ने शिवजी पर उनके ही दिए फरसे से प्रहार कर दिया. शिवजी को अपने फरसे का भी मान रखना था सो उन्होंने चोट खा ली. चोट गहरी लगी. शिवजी का मस्तक फट गया. शिवजी के एक नाम ‘खण्डपरशु’ का यही रहस्य है.
शिवजी ने इसके लिए बुरा न माना बल्कि परशुराम को छाती से लगा लिया और कहा- अन्याय करने वाला चाहे कितना बड़ा क्यों न हो, धर्मशील व्यक्ति को अन्याय के विरूद्ध खड़ा होना चाहिए. यह उसका कर्त्तव्य है. संसार से अधर्म मिटाने से मिटेगा, सहने से नहीं.
शिवजी ने अपने सभी शिष्यों से यह भी कह था कि- बालकों! केवल दान, धर्म, जप, तप, व्रत, उपवास ही धर्म के लक्षण नहीं हैं. अन्याय, अधर्म से लड़ना भी धर्म साधना का एक अंग है.
परशुराम ने तीर्थों का सेवन करने बाद भगवान दत्तात्रेय से षोड़षी मंत्र की दीक्षा ली और स्थाई रूप से महेंद्र पर्वत पर आश्रम बना कर माता त्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप में रम गये.
परंतु जब सीताजी के स्वयंवर में शिवजी का धनुष टूटा तो वह पुनः क्रोधित होकर उपस्थित हुए. भगवान राम ने उनकी चुनौती स्वीकार कर उनके धनुष की डोरी चढा दी थी.
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अभी यह आईफोन के लिए नहीं है. जल्द ही उपलब्ध होगा. क्षमाप्रार्थी हैं.
Jay Shri parshuram ji ki