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क्या सुंदर बात है. जीवन को तराजू के पलड़ों की तरह नहीं लेना चाहिए. जिसमें हर उपकार के बदले प्रतिउपकार की अपेक्षा माप-तौल कर रखी जाए. शास्त्रों में जो कहा गया है सरल शब्दों में उसका सार है- नेकी कर दरिया में डाल.

कोई नेकी किसी पर की है तो उसके पुरस्कार की अपेक्षा जो रखता है वह संसार का सबसे दुखी प्राणी है. हर व्यक्ति इस भावना से ग्रस्त है कि वह संसार में सबका भला करता है लेकिन बदले में लोग उसका भला नहीं करते.

यह ऐसा खोट है जिसे मनुष्य स्वीकारने को तैयार नहीं होता और इसके परिणामस्वरूप अवसादग्रस्त रहता है.

आप जिस वस्तु के लिए सबसे अधिक तड़प रहे हैं कुछ समय के लिए उसके प्रति विरक्ति का भाव अभ्यास से लाकर देखिए. जब भी उसका ख्याल आए तो संकल्प लें संसार में मुझे सबकुछ चाहिए सिवाए उस चीज के.

शुरू-शुरू में कष्ट होगा लेकिन अगर करने में समर्थ रहे तो देखिए आप एक झटके में सारी परेशानियों से ऊबरे हुए हैं. स्वयं को बहुत हल्का महसूस करेंगे. यह प्रयोग संसार भर के मनोवैज्ञानिकों ने अनगिनत लोगों पर आजमाया है और परिणाम उत्साहवर्धक रहे हैं.

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