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चित्रकार यह सब दूर से देख रहा था. वह वहां चला आया. लड़की ने पूछा- यह पेंटिंग कुछ अलग है. पर मुझे समझ नहीं आ रहा. आपने इसका नाम इतना सुंदर दिया है-अवसर. आखिर क्यों?
चित्रकार ने कहा- हां यह अवसर ही तो है.
लड़की ने पूछा- आप मेरे पास स्वयं आए इससे तो स्पष्ट है कि यह पेंटिंग बहुत खास है. इसमें आप कुछ विशेष कह रहे हैं. आपने अवसर का मुंह ढंक क्यों दिया है?
चित्रकार ने कहा- प्रदर्शनी की तरह अवसर हर मनुष्य के जीवन में आता है. कई बार आता है और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है किंतु सामान्य मनुष्य उस अवसर को पहचान नहीं पाता. इसलिए वे जहां हैं वहीं पड़े रह जाते हैं.
जो अवसर को पहचान लेते हैं उसका उपयोग कर लेते हैं वे जीवन में कुछ विशेष कार्य कर जाते हैं. प्रदर्शनी के अंत में मैंने इसे रखा क्योंकि यहां तक सभी आएंगे नहीं, देखेंगे नहीं समझेंगे नहीं.
वास्तव में ये सबके लिए होते भी नहीं. तुम आईं, देखा और समझने का प्रयास करती रही तो मुझे लगा कि तुम्हें इसके बारे में बताना चाहिए.
लड़की बड़ी खुश हुई यह जानकर. उसने चित्रकार से पूछा- आपने कंधों की जगह इसके पैरों में पंख क्यों बनाए, कोई विशेष बात?
चित्रकार ने बताया- जो अवसर निकल गया वह कभी दोबारा नहीं आता. निकल चुके अवसर के लिए छटपटाना व्यर्थ है वैसे ही जैसे किसी को पैरों में पंख मिल जाएं तो भी वह उड़ नहीं सकता. सजग रहो और नए अवसर की प्रतीक्षा करो.
लड़की को सारी बातें समझ में आ गई थीं. उसके चेहरे की चमक बता ही थी कि उसने जीवन की किसी उलझन का रास्ता खोज लिया है.
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