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पार्वतीजी इस बात से तो प्रसन्न थीं कि महादेव को वह अवसर मिलने वाला है जिसकी उन्हें लंबे समय से प्रतीक्षा थी लेकिन देवी के मन में एक दुविधा थी जिससे वह थोड़ी चिंतित थीं. शिवजी ने उनकी अप्रसन्नता का कारण पूछा.

देवी ने बताया- स्वामी आपको तो अपने इष्टदेव का सशरीर सेवा का अवसर मिल जाएगा. मेरे इष्ट तो आप हैं. इस कारण आपसे मेरा बिछोह हो जाएगा इसलिए मैं चिंतित हूं. और रावण तो आपका परम भक्त है. क्या उसके विनाश में आप सहायता करेंगे?

देवी पार्वती की शंका का समाधान करते हुए शिवजी बोले- ‘बेशक रावण मेरा परमभक्त है, लेकिन वह आचरणहीन हो गया है. उसने अपने दस शीश काटकर मेरे दस रूपों की सेवा की है, परंतु मेरा एकादश रूप तो अभी भी रावण द्वारा नहीं पूजा गया.

शिवजी ने देवी को बताया- रावण संहार में श्रीराम की सहायता के लिए मैं दस रूपों में आपके पास रहूंगा और एकादश रुद्र के अंशावतार रूप में अंजना के गर्भ से जन्म लेकर रावण के विनाश में श्रीराम का सहायक बनूंगा.

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