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गुरू जो कि देवों के गुरू भी कहे जाते हैं वह एक राशि लगभग एक वर्ष तक विचरते हैं. बारह राशियों में भ्रमण करने में गुरू ग्रह को करीब 12 वर्ष लग जाते हैं. इसीलिए हर बारह साल बाद फिर उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन होता है.

हर 144 वर्ष बाद महाकुंभ का आयोजन होता है.

पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं के एक दिन के बराबर है. उसी प्रकार यह भी माना जाता है कि देवताओं का बारह वर्ष पृथ्वी के 144 वर्ष के बाद आता है.

इसलिए ऐसा समझा जाता है कि 144 वर्ष बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है. अतः उस वर्ष पृथ्वी पर प्रयाग में महाकुंभ का आयोजन होता है.

तन, मन व मति के दोषों की निवृति के लिए तीर्थ और कुम्भ पर्व हैं. अमृत प्राप्ति के लिए होनेवाला देवासुर संग्राम हमारे भीतर भी हो रहा है.

तुलसीदासजी कहते है- वेद समुद्र है, ज्ञान मंदराचल है और संत देवता हैं जो उस समुद्र को मथकर कथारूपी अमृत निकालते हैं. उस अमृत में भक्ति और सत्संग रूपी मधुरता बसती है.

कुमति के विचार ही असुर हैं, विवेक मथनी है और प्राण-अपान ही वासुकि नागरुपी रस्सी हैं. इन्हें मथकर अमृत निकालने का प्रयास धर्म और आध्यात्म है. प्रभु शरणम् इसी महान कार्य में एक छोटा सा प्रयास. कुंभ से जुड़ी कथाओं का आनंद प्रभु शरणम् एप्प में लीजिए.

एप्प का लिंक आपको फिर से देता हूं.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

(सिंहस्थ कुंभ की फोटो साभार इंटरनेट से ली गई है. यह फोटो हमारी संपत्ति नहीं हैं. किसी को आपत्ति होगी तो इसे हटा देंगे.)

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