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पुराणों में प्रसंग आता है, जब भागीरथ ने गंगा को स्वर्ग से धरती पर आने की प्रार्थना की तो गंगाजी ने पूछा- लोग मुझमें स्नान करके अपने पापों से तो मुक्ति पा लेंगे लेकिन वे पाप तो मुझमें डाल जाएंगे. फिर उस पाप को मैं कैसे धोऊंगी?
भागीरथ बोले- आत्मतीर्थ में नहाए ब्रम्हज्ञानी जब आपके जल में स्नान करेंगे तो उनके स्पर्श से आपके पाप नष्ट हो जाएंगे पवित्र हो जाएंगी. भागीरथी के इस आश्वासन पर गंगा के मन की शंका मिटी और वह पृथ्वी पर आने को मानीं.
इसलिए कहा जाा है कि कुम्भों में ब्रम्हज्ञानी जब गंगास्नान करने आते है तो गंगा पहले स्वयं को पावन करती हैं.
कुंभ आयोजन का निर्णय किस आधार पर होता है?
कुंभ योग के विषय में विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है.
सूर्य एवं गुरू दोनों ही सिंह राशि में होते हैं तब कुंभ का आयोजन गोदावरी तट पर नासिक में होता है.
गुरु जब कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब उज्जैन में कुंभ होता है.
जब सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में और गुरू मेष राशि में हों तो प्रयाग में कुंभ होता है.
गुरु जब कुंभ राशि में हों और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करतें है तब हरिद्वार में कुंभ होता है.
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dhyan jivan paramaatamaa se milaa detaa hai jisase tum shvyam ho jaaoge.