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शाप से ऐश्वर्य-संपदा से रहित होकर क्षीण पड़ गए देवता बूढ़े और निर्बल पड़ गए. उन्हें जरा निवारिणी सुधा यानी अमृत की आवश्यकता हुई.
वह अमृत समुद्र में था.देवों ने असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया. मंथन की कथा भी बड़ी सुंदर है. अगर भगवान विष्णु ने चतुराई न दिखाई होती तो सारे देवता मंथन से पहले ही वासुकी के विष के कारण मर गए होते.
विष से निकालने के लिए श्रीहरि ने देवताओं को क्या गुप्त मंत्र दिया और फिर कैसे बात बनी यह सारी कथा बड़ी सुंदर है. यह कथा भी विस्तृत है औऱ प्रभु शरणम् एप्पस में इसे भी पढ़ा जा सकता है.
खैर, कथा पर लौटते हैं. धन्वंतरि अमृत कलश लेकर निकले तो देवों और असुरों दोनों उसे प्राप्त करना चाहते थे. इंद्रपुत्र जयंत कलश लेकर भागा और बारह दिनों तक असुरों को छकाता रहा.
जब असुरों ने घेर लिया तो कलश के लिए छीना-झपटी हुई जिसमें चार स्थानों पर कलश से अमृत छलककर गिरीं. अमृत के प्रभाव से वे चार स्थान दिव्य हो गए.
उन नदियों में अमृत के गिरने से जल में अमृत का गुण आ गया और वहीं कुंभ स्नान होते हैं.
इस छीना-झपटी में अमृत छलककर प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक इन चार स्थानों पर गिरा. प्रयाग गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर, हरिद्वार गंगातट पर उज्जैन शिप्रा और नासिक गोदावरी के तट पर बसा हुआ है.
झीना-झपटी के दौरान कलश के टूट जाने, उसके प्रस्रवण, दैत्यों के द्वारा अपहरण हो जाने जैसा भय भी था. उस समय सूर्य, शनि, गुरू और चंद्रमा ने अपने बल-बुद्धि का परिचय दिया.
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dhyan jivan paramaatamaa se milaa detaa hai jisase tum shvyam ho jaaoge.