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बच्चों की बात सुनकर उनकी माँ गिद्धनी को दया आई गई. उसने दोनों भाई-बहन को देखा और उनके पास जाकर कहा-आपकी इच्छा मैंने जान ली है. आप लोग भोजन करें. कल प्रातः मैं आप लोगों को समुद्र पार सोमा के घर पहुँचा दूँगी.

गिद्धनी की बात सुनकर उन दोनों भाई-बहिन की चिंता कम हुई, दोनों को अत्यंत प्रसन्नता हुई. उन्होंने गिद्धनी को प्रणाम कर भोजन किया.

प्रातः होते-होते गिद्धनी ने उन्हें सिंहल द्वीप में सोमा के गांव पहुंचा दिया.

भाई बहन खोजते-खोजते सोना के घर पहुंचे. उन्होंने पड़ोस में ही एक झोपड़ी बना ली और वहीं रहने लगे.

गुणवती तडके ही उठकर सोना धोबिन के घर जाकर सफाई और अन्य सारे काम करके अपने घर वापस आ जाती. इस तरह एक वर्ष बीत गया.

एक दिन सोना धोबिन ने अपनी बहु की प्रशंसा करते हुए कहा- आजकल तुम तडके ही उठकर सारे काम कर लेती है और पता भी नहीं चलता. बहु आश्चर्य में थी.

बहु ने कहा- मांजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़त्म कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूं.

दोनों सास-बहु उलझन में थीं कि आखिर कौन रोज इनके घर का सारा काम निपटा जाता है.

रात को सास-बहु दोनों निगरानी में बैठे. धोबिन ने देखा कि एक एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम चुपचाप निपटाने के बाद चली जाती है. दोनों ने सोचा शायद कोई शापित दिव्य स्त्री हो.

हिम्मत करके एक दिन वह कन्या काम करके जाने को हुई तो सोना ने रोक लिया.

सोना ने पूछा- आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?

कन्या ने साधु द्वारा कही गई सारी बात बता दी. सोना ने कहा- मेरी सेवा करके आप मुझपर पाप क्यों चढ़ाती हैं. आप ऐसा करना बंद कर दें.

गुणवती ने उसके पैर पकड़ लिए और उसका उद्धार करने के लिए गिड़गिड़ाने लगी.

उसके भाई ने भी तरह-तरह से विनती की और कहा- एक अविवाहित कन्या का दर्द आप समझिए. मेरे माता-पिता और हम भाइयों की पीड़ा समझकर इसे अपना आशीर्वाद दें.

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