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कल मछलियों की कथा सुनाई थी. मौन का मर्म मछलियों ने जान लिया तो अपनी जान को मुसीबत से डालने का तरीका उन्हें आ गया. ज्ञान की उपयोगिता तो वास्तव में तभी है जब वह उपयोगी हो जाए. मछलियों के लिए वही उपयोगी था.
हम संसार में आते हैं तो अपने साथ एक शाश्वत सत्य लिए आते हैं- जन्म तो आज हुआ मृत्यु की तिथि भी निर्धारित है. एकमात्र सत्य है.
कब होगी पता नहीं लेकिन होगी जरूर इसे कोई टाल नहीं सकता. रामजी ने जीवन की कितनी चाबी भरी है यह तो ठीक-ठीक कोई ज्योतिषी कोई ज्ञानी-ध्यानी बता ही नहीं सकता.
फिर क्या उपाय है?
तो यही मान लें कि जीवन का हर दिन अंतिम दिन ही है और अंत भला तो सब भला. भला अंतिम दिन कोई बुरे काम करता है. तो फिर आज से ही मानना शुरू कर दें कि अंतिम दिन है. किसी का दिल नहीं दुखाकर नहीं जाना है भाई.
अहा! वाह,वाह क्या बात है, क्या बात कह दी!!
सुंदर लच्छेदार शब्दों में मैंने जो बात कही उसे पढ़कर मन को अच्छा तो लगा होगा. शायद यह भी सोच रहें होंगे कि काश ये लाइन कॉपी हो जाए तो व्हॉट्सएप्प पर या फेसबुक पर शेयर कर दूं, अपना स्टेट्स मैसेज बना लूं. इंप्रेशन जमेगा.
बस इंप्रेशन जमाने के भूल-भूलैया में ही तो फंसे हैं हम. यदि ऊपर कही लाइन बहुत पसंद आई है तो फिर आप इसे पढ़ते जाइए. आखिर में जो बातें कहीं गई हैं उसे तो कॉपी नहीं कर पाए तो स्क्रीनशॉल लेकर फॉरवर्ड कर देंगे.
मुस्कुरा रहे हैं आप या खीझ भी रहे हों, पर कोई बात नहीं. आप इसे पढ़ेंगे जरूर इतना तो मैं जानता हूं. यकीन मानिए निराश नहीं होंगे. आनंद ही आएगा.
कथा वाकई बहुत दमदार है. आपके विचारों को झकझोर कर रख देगी. शुरू करता हूं.
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