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योगविद्या के बहुत बड़े जानकार और तमाम तरह की सिद्धियां रखने वाले विष्णुभक्त ब्राह्मण शिवशर्मा द्वारका में रहते थे. शिवशर्मा के पांच बेटे थे. यज्ञ, वेद, धर्म, विष्णु और सोम. सभी एक से बढ कर एक पितृभक्त थे.
शिवशर्मा ने अपने बेटों के पितृप्रेम की परीक्षा लेनी का निश्चय किया. शिवशर्मा सिद्ध थे इसलिए माया रचना उनके लिए कोई कठिन बात नहीं थी. उन्होंने माया फैलाई. अगले दिन पांचों पुत्रों की माता बहुत बीमार हो गईं. उनको बहुत तेज बुखार हुआ.
बेटों ने बहुत दौड़ धूप की. वैद्य को दिखाया पर कोई लाभ न हुआ. उनकी माता का देहांत हो गया. बेटों ने पिता से पूछा अब आगे क्या आदेश है. शिवशर्मा को तो बेटों की परीक्षा ही लेनी थी. सो उन्होंने सबसे बड़े बेटे यज्ञ को बुलाया.
उन्होंने यज्ञ से कहा- तुम किसी तेज़ हथियार से अपनी मां के मृत शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर के इधर उधर फेंक दो. यज्ञशर्मा ने एक बार भी न तो इसका कारण पूछा न ही कोई सवाल किया. पिता के आदेश का पालन कर आया.
अब शिवशर्मा ने दूसरे बेटे को बुला कर कहा- बेटे वेद तुम्हारी मां तो अब रही नहीं. मैंने एक बहुत रूपवती दूसरी स्त्री देखी है. मैं उससे विवाह करना चाहता हूं. तुम उसके पास जाओ. उसे किसे भी तरह प्रसन्नकर मुझसे विवाह को तैयार करो.
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