मित्रों, आपको शायद आश्चर्य हो रहा हो कि सावन मास है लेकिन हम शिवजी की कथाएं क्यों नहीं दे रहे हैं. प्रभु शरणम् में कालक्रम में कथा देने की परंपरा है फिर भी शिवकथा नहीं है, क्यों?

हमने पाठकों के आग्रह पर शिवजी को समर्पित Mahadev Shiv Shambhu एप्पस बनाया है. शिव कथाएं वहां दी जा रही हैं. शिवकथाओं और संपूर्ण शिवोपासना के लिए Play Store में Mahadev Shiv Shabmbhu सर्च करके डाउनलोड कर लें.

डाउनलोड में समस्या आए तो 9871507036 पर अपना और अपने शहर का नाम WhatsApp करें. डायरेक्ट लिंक भेज दिया जाएगा. अनुरोध है WhatsApp पर फिजूल की बातें न करें. बेवजह तस्वीरें न भेजें, आपका नंबर स्वतः ब्लॉक हो जाएगा. पढ़ें कथा.

परशुराम ने कार्तवीर्य का वध कर दिया था. राजा सगर ने महामुनि वशिष्ठजी से पूछा-ऋषिवर यह तो बड़े अचरज की बात है कि परशुराम ने कार्तवीर्य जैसे बलवान को इस प्रकार कैसे समाप्त कर दिया. कार्तवीर्य को दत्रात्रेय मुनि का आशीर्वाद प्राप्त था.

हजार हाथों की शक्ति वाले सहस्रबाहु को श्रीहरि की भी अनुकंपा मिली थी. निस्संदेह परशुराम को भी शिवजी का आशीर्वाद था. वह भी परमवीर हैं. फिर भी अकेले पूरी सेना को हरा दें! इस युद्धकथा में के पीछे कोई अंतर्कथा जरूर है, कृपा कर बताएं.

वशिष्ठ मुनि ने कहा- राजन! ब्रह्माजी के कहने पर परशुराम शिवलोक गए. भोले को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद, उत्तम मंत्र, पाशुपत अस्त्र तथा अमोघ कवच लेकर लौटे. कवच को सिद्ध करने के लिए परशुराम ने पुष्कर जाकर सौ वर्ष तक साधना की.

परशुराम के साथ उनका शिष्य अकृतव्रण भी था. एक दिन परशुराम और अकृतव्रण पुष्कर गए. वहीं तालाब के किनारे उन्होंने एक हिरन-हिरनी के जोड़े को देखा जो वहां भागकर आया था और बहुत प्यासा तथा भयभीत था.

हिरन के इस जोड़े के पीछे-पीछे एक शिकारी भी आया जो परशुराम और अकृतव्रण को देखकर शिकार से रुक गया. हिरन-हिरनी के जोड़े ने पानी पिया और उसके बाद परशुराम और अकृतव्रण के निकट ही एक पेड़ की छांव में सुस्ताने लगा.

हिरन ने हिरनी से कहा- सामने देख वह जमदग्नि के पुत्र महापराक्रमी परशुराम हैं और साथ में उनका शिष्य. जब तक ये यहां हैं तब तक हम यहीं रुकेंगे क्योंकि इनके रहने से शिकारी का कोई भय नहीं रहेगा.

हिरन ने हिरनी को बताया कि यह परशुराम भगवान शिव से शक्तियां मांगकर सहस्त्रबाहु को न केवल समाप्त करना चहते हैं वरन धरती को 21 बार क्षत्रियों से मुक्त करना चाहते हैं.

शिवजी ने श्रीकृष्ण मंत्र और अभेद्य कवच इनको दिया है. यह यहीं रहकर सौ साल से उसे सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन जिस तरह से उसे सिद्ध कर रहे हैं. उससे नहीं लगता कि यह मंत्र हजार साल में भी सिद्ध हो पाएगा.

परशुराम और अकृतव्रण को हिरनों की बात सुनकर अचरज हुआ. हिरन ने हिरणी को परशुराम और अकृतव्रण के प्रथम भेंट की होमधेनु के साथ आश्रम में घटी घटना भी सुनाई. (देखें पूर्व कथा) दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ. वे हिरन की बातें सुनने लगे.

हिरन आगे बोला- परशुराम को यहां से थोड़ी दूर कनिष्ठ पुष्कर स्थित अगस्तय मुनि के आश्रम में जान चाहिए. अगस्त्य मुनि के पास श्रीकृष्ण प्रेमामृत नाम के स्त्रोत सिद्ध हैं. उनसे ज्ञान प्राप्त कर तो श्रीकृष्ण कवच की सिद्धि हो जाएगी.

परशुराम के दिव्यास्त्रों की कोई बराबरी नहीं है. परशुराम के युद्ध कौशल और वीरता भी अदभुत है. इस सिद्धि के मिल जाने से वह सहस्त्रबाहु के पुत्र-पौत्र, मंत्रीगण, मित्र वर्ग सेना तक सब को समाप्त कर करने में सक्षम हो सकते हैं.

हिरनी ने पूछा- सौ सालों तक अनवरत प्रयास से भी परशुराम यह मंत्र सिद्ध क्यों नहीं कर पा रहे हैं. खासतौर से तब जब कि उन्होंने शिवजी को प्रसन्न कर लिया है और उत्तम तपस्वी भी हैं.

हिरन बोला, यह साधना सिद्धी पर नहीं पहुंच पा रही है तो इसका मुख्य कारण उनकी भक्ति है. परशुराम की भक्ति कनिष्ठ तो नहीं पर सर्वोत्तम तो क्या उत्तम भी नहीं है. इनकी भक्ति, मध्यम भक्ति है.

इस पर हिरनी ने हिरन से पूछा कि सर्वोत्तम, उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ ये कैसी भक्तियां हैं मुझे भी बताइए. हिरन ने हिरनी को इन सब के बारे में उदाहरण दे देकर बड़े विस्तार से बताया.

हिरनी ने पूछा- आपको इतना ज्ञान कहां से हुआ? हम पशुयोनि में पैदा हुए हैं फिर मानवों और देवताओं के बारे में इतनी बात आपको कैसे पता है? हिरन ने कहा- हिरनी, जो व्यक्ति अपने अंतिम समय जैसी भावना रखता है वह ऐसा ही जन्म लेता है.

पूर्वजन्म में मैं कौशिक गौत्र में पैदा ब्राह्मण था. मेरे पिता शिवदत्त शास्त्रों के अच्छे विद्वान थे. हम चार भाई थे और अपने पिता की बहुत सेवा किया करते थे. एक दिन हम सब जंगल में समिधा लाने पहुंचे तो नदी के तट पर चले गये.

वहां स्नान करने के बाद पर्वतों की छटा देखने उपर चढ़ गये. वहां हम मोहक छवि निहार ही रहे थे कि नीचे झरने के पास एक बाघ कहीं से आता दिखा. हम डर गए. इसी बीच एक प्यासी हिरनी भी झरने पर पानी पीने आ गई.

बाघ ने उसे देखा और तत्काल ही हिरनी को दबोच लिया. हिरनी को ऐसे पकड़े जाते और तड़पते देख मेरे सभी भाई अलग अलग दिशाओं में भाग खड़े हुये. मैं भी अपनी जान लेकर भागा और बहुत उंचाई से खाई में जा गिरा.

गिरते समय मुझे यह बोध था कि मैं भी हिरन ही हूं और बाघ मेरे पीछे आ रहा है. वह मुझे छोड़ेगा नहीं. इसी बीच मैं गिरा और मेरी मृत्यु हो गई. तुम वही हिरनी हो जिसे बाघ ने मारा था. मैं वह ब्राह्मणपुत्र जो हिरन के बारे में सोचता मरा था.

यह बात सुनकर परशुराम को घोर आश्चर्य हुआ और वे कुछ विचारने के बाद कनिष्ठ पुष्कर स्थित अगस्त मुनि के आश्रम की ओर जाने को तैयार हो गये. जब वे उधर जा रहे थे रास्ते में उस शिकारी का शव मिला जो हिरनों को मारने आया था.

उसे किसी बाघ ने मार डाला था. कनिष्ठ पुष्कर के एक पवित्र सरोवर में परशुराम और अकृतव्रण ने स्नान किया.संध्या पूजन के पश्चात अगस्तय मुनि के आश्रम में प्रवेश किया तो देखा वे दोनों हिरन और हिरनी आश्रम के द्वार से भीतर जा रहे थे.
शेष कथा अगली पोस्ट में…

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here