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भगवान श्रीराम को अयोध्या का राज पाट की बजाए वनवास मिला. श्रीराम इस बात से कतई उदास नहीं थे बल्कि वे तो इस बात पर खुश थे कि पिता के आदेश के पालन का अवसर मिल रहा है. इस खुशी में उन्होंने यह तय किया कि जंगल जाने से पहले वे अपने पास की सभी धन संपत्ति दान कर जायेंगे.
भगवान राम ने अपने सभी सेवकों को बुलाया और चौदह साल तक के लिये रहने खाने के लिये भरपूर धन दे दिया. इसके बाद उन्होंने दीन दुखियों में खूब सारा धन बांटा और ब्राह्मणों को दान तथा बालकों को उपहार दिये. रामचंद्र जी के कुबेर की तरह धन लुटाने की चर्चा दूर दूर तक फैल गयी.
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