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आप कह रहे हैं कि हम अमृत जाकर पी लें लेकिन आप यह छाछ ही पीएंगे. तो क्या ये छाछ अमृत से भी बढ़कर है? अरे छाछ तो छाछ है इसमें क्या बड़ी बात है. शंका का जब तक निवारण नहीं होता हम तो नहीं जाने वाले.

ठाकुरजी भावविभोर हो गए हैं. अपनी आँखों में आँसू भरकर बोले- देवताओं आपको पता नहीं कि इस छाछ को प्राप्त करने के लिए मुझे गोपियों के सामने नृत्य करके उन्हें प्रसन्न करना पड़ता है. मैं नाचकर आया हूँ तब जाकर ये छाछ मिली है.

ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पर नाच नचावे. अब जिस छाछ के लिए मुझे इतना नृत्य करना पड़ा उस छाछ में कुछ तो बात होगी ही ना! बिना नाचे यह छाछ मिलती नहीं.

अब भोलेनाथ अगर आपने नृत्य किया तो सृष्टि पर संकट आ जाएगा. ब्रह्मदेव और देवराज आपका नृत्य शोभा नहीं देगा. फिर आप बताएं कि कन्हैया ने किया नाच तो मिली छछिछा भर छाछ, आपको ऐसे ही कैसे दे दूं.

देवतागण प्रभु की इस लीला पर मुग्ध हुए जा रहे हैं. उन्हें प्रणाम करके अपने धाम को लौट गए हैं.

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