माता पार्वती शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप कर रही थीं. उनके तप को देखकर देवताओं ने शिवजी से देवी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की.

शिवजी ने पार्वतीजी की परीक्षा लेने सप्तर्षियों को भेजा. सप्तर्षियों ने शिवजी के सैकड़ों अवगुण गिनाए पर पार्वतीजी को महादेव के अलावा किसी और से विवाह मंजूर न था.

विवाह से पहले सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं. इसलिए शिवजी ने स्वयं भी पार्वती की परीक्षा लेने की ठानी.

भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती जो वरदान देकर अंतर्धान हुए. इतने में जहां वह तप कर रही थीं, वही पास में तालाब में मगरमच्छ ने एक लडके को पकड लिया.

लड़का जान बचाने के लिए चिल्लाने लगा. पार्वतीजी से उस बच्चे की चीख सुनी न गई.  द्रवित हृदय होकर वह तालाब पर पहुंचीं.

मगरमच्छ लडके को तालाब के अंदर खींचकर ले जा रहा है. लडके ने देवी को देखकर कहा- मेरी न तो मां है न बाप. न कोई मित्र. माता आप मेरी रक्षा करो.

पार्वतीजी ने कहा- हे ग्राह! इस लडके को छोड दो. मगरमच्छ बोला- दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझकर स्वीकार करना, मेरा नियम है.

ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लडके को भेजा है. मैं इसे क्यों छोडूं? पार्वतीजी ने विनती की- तुम इसे छोड़ दो. बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो.

मगरमच्छ बोला- एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं. आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा.

पार्वतीजी तैयार हो गईं. उन्होंने कहा- मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो.

मगरमच्छ ने समझाया- सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो. हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं. उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा.

पार्वतीजी ने कहा- मेरा निश्चय पक्का है. मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं. तुम इसका जीवन दे दो.

मगरमच्छ ने पार्वतीजी से तपदान करने का संकल्प करवाया. तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा.

मगर बोला- हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं. तुमने जीवनभर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी. चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं.

पार्वतीजी ने कहा- हे ग्राह! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लडके को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता?

देखते ही देखते वह लडका अदृश्य हो गया. मगरमच्छा लुप्त हो गया. पार्वतीजी ने विचार किया- मैंने तप तो दान कर दिया है. अब पुन: तप आरंभ करती हूं.

पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया. भगवान सदाशिव फिर से प्रकट होकर बोले- पार्वती, भला अब क्यों तप कर रही हो?

पार्वतीजी ने कहा- प्रभु! मैंने अपने तप का का दान कर दिया है. आपको पतिरूप में पाने के संकल्प के लिए मैं फिर से वैसा ही घोर तप कर आपको प्रसन्न करुंगी.

महादेव बोले- मगरमच्छ और लड़के दोनों रूपों में मैं ही था. तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं, इसकी परीक्षा लेने को मैंने यह लीला रची.

अनेक रूपों में दिखनेवाला मैं एक ही एक हूं. मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूं. अपना तप मुझे ही दिया है इसलिए अब और तप करने की जरूरत नहीं.

देवी महादेव को प्रणामकर प्रसन्न मन से विदा हुईं. (शिव पुराण)

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संकलन व संपादन: राजन प्रकाश

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