जंगल में एक बहेलिया शिकार कर रहा था. बहेलिया होने के कारण पशुओं से दया दिखाने का तो सवाल ही नहीं था, मनुष्यों के प्रति भी उसका स्वभाव क्रूर था.
उसने कई जानवर मारे, कुछ को पिंजड़े में बंद कर लिया. शिकार करके शाम को वह घर लौट रहा था कि ओले पड़ने लगे. सर्दियों के दिन थे.
भीगने के कारण उसकी बुरी दशा हो गई. उस पर बेहोशी चढ़ रही थी. बहेलिया भटकने लगा.
उसे हर ओर तूफान के कारण धरती पर गिरे पक्षियों के घोंसले और मृत बच्चे दिखाई दे रहे थे. बहेलिया एक घने पेड़ के नीचे रूका.
वहां उसे जमीन पर पड़ी एक कबूतरी दिखी जो सर्दी से कांप रही थी. वह खुद कष्ट में था लेकिन लालच ऐसा कि उसने कबूतरी को पिंजड़े में डाल लिया.
उसने रात उसी पेड़ के नीचे बिताने का तय किया. पत्ते बिछाए और पत्थर पर सिर रखकर लेट गया. उस पेड़ पर एक कबूतर अपने परिवार के साथ रहता था.
कबूतरी नहीं लौटी तो कबूतर को चिंता हुई. उसे तरह-तरह की आशंका हो रही थी कि कहीं तूफान में उसे कुछ हो तो नहीं गया.
दुखी कबूतर बिलखता हुआ कह रहा था- ऐसी उत्तम पत्नी के बिना जीवन का कोई मोल नहीं. सौभाग्य से ऐसी जीवनसंगिनी मिली थी. उसके बिना सब सूना लगा रहा है.
पिंजड़े में कैद कबूतरी सुनकर प्रसन्न हुई कि उसने एक कुशल पत्नी का धर्म निभाया है और उसका परिवार उससे प्रसन्न है.
उसने कबूतर से कहा- यह बहेलिया आज हमारा अतिथि है. सर्दी से अचेत हो रहा है. आतिथ्य धर्म निभाते हुए आग का प्रबंध करिए. मेरे लिए दुख न करें. आपको दूसरी पत्नी मिल जाएगी.
धर्म के अनकूल पत्नी की बातें सुनकर कबूतर खुश हुआ. लोहार के पास से एक जलती लकड़ी चोंच में लाया और सूखे पत्तों पर डाल दिया. आग जली तो बहेलिए की जान बची.
बहेलिए ने कहा- अतिथि के लिए भोजन का भी प्रबंध करो. कबूतर ने कहा- हम कभी अन्न संग्रह तो नहीं करते फिर भी तुम्हारी भूख मिटाने को कुछ करता हूं.
कबूतर ने अग्नि की तीन बार प्रदक्षिणा की और फिर उसमें कूद गया. कबूतर का त्याग देखकर बहेलिए को पछतावा हुआ- एक पक्षी होकर इसमें दूसरों के प्राणों पर इतनी दया है?
उसने सभी जीवों को पिंजड़े से मुक्त कर दिया. कबूतरी से क्षमा मांगी और वचन दिया कि क्रूर कर्म त्याग देगा. पति के त्याग से एक मानव में हुए इस परिवर्तन से कबूतरी गर्व कर रही थी.
कबूतरी विलाप करने लगी. मेरे पति के समान वचनपालक कोई दूसरा नहीं हो सकता. धर्मपालन के लिए उसने जीवन त्याग दिया. मेरे प्राणों का क्या मोल. कबूतरी ने भी प्राण त्याग दिए.
अतिथि सेवा महान धर्म है. अनीति का सहारा लेने वाले अतिथि के प्रति भी कर्तव्य नहीं भूलना चाहिए. क्या पता उस दिन ईश्वर स्वयं उस अतिथि में समाकर आपकी परीक्षा ले रहे हों. (महाभारत की नीति कथा)
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्