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महर्षि च्यवन एक बार नदी के जल में समाकर तपस्या कर रहे थे. कई वर्षों तक वह पानी के भीतर ही रहे. नदी के जीवों से उन्हें प्रेम हो गया था.
नदी के जीव भी उन्हें बहुत प्रेम करते थे. वे उनके शरीर पर दिनभर विचरते, गुदगुदी करते और तरह-तरह की चुहल करते जैसे बच्चे अपने पिता के साथ करते हैं.
मल्लाहों ने मछलियां पकड़ने के लिए जाल डाला. उसमें फंसकर कई मछलियां मर गईं. च्यवन भी उसमें उलझ गए. जाल बाहर आया तो मछलियों, कछुओं के साथ ऋषि भी थे.
मछुआरों को ऋषि के शाप का भय हुआ. उन्होंने पैर पकड़कर क्षमा मांगी. ऋषि ने कहा कि वह तभी जाएंगे अगर मछुआरे मछलियों और दूसरे जीवों को भी मुक्त कर दें.
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