Draupadi-ke-panch-pati-kyon?
Panchali_Draupadi

अनुसूया (Anusuya) , सुलक्षणा (Sulakshna) , सावित्री (Savitri) , मंदोदरी (Mandodari)  के साथ द्रोपदी (Draupadi) की गिनती पांच महान पतिव्रता और पूजनीया नारियों में होती है.  जिसके पांच पति हों उसे ऐसा सम्मान क्यों दिया जाता है? यह है न एक बड़ा आश्चर्य जिनका ज्ञान नहीं होने से हम अक्सर द्रोपदी के बारे में गलत राय रखते हैं. या कई बार विधर्मियों द्वारा द्रोपदी के मान पर प्रश्न उठाने पर हम चुप रह जाते हैं.

आज आपको बताएंगे द्रोपदी के पांच पतियों का रहस्य. पांच पतियों की पत्नी होने के कारण वह महान हुईं. कौन थे वे पांच पति.

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कुंती और माधवी ने पांच देवताओं का आह्वान करके पांच पुत्र प्राप्त किए थे. यह बात तो सभी जानते हैं. लेकिन द्रोपदी ने महादेव से पांच पतियों का आशीर्वाद मांग लिया था.

पांच इंद्रों को भगवान रूद्र (Rudra) ने मानव रूप में पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप दे दिया था. महादेव द्वारा शापित होने से वे पांचों इंद्र (Indra) तत्काल निष्प्रभाव हो गए और अपने सूक्ष्म अंश रूपों में पांच देवों का आश्रय लिया. फिर उनके माध्मय से पांडव (Pandav) रूप में उन्होंने जन्म लिया.

अब आप कहेंगे कि पांच इंद्र? ये क्या बला है, भला पांच इंद्र कैसे हो सकते हैं? हजारों इंद्र हो सकते हैं, हजारों ब्रह्मा भी. इस विषय पर लोमश मुनि की एक कथा आती है जिन्होंने हजारों ब्रह्मा देखे थे और उनका रहस्य बताया था. इस पर बाक फिर कभी. आज तो द्रोपदी की जिद और पांच पतियों के आशीर्वाद पर ही फोकस करते हैं. आइए सुनते हैं कथा.

कुरूवंश के सहयोग से द्रोणाचार्य ने द्रुपद को पराजित कर उनका आधार राज्य ले लिया था. द्रुपद ने इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए यज्ञ से द्रौपदी का प्राप्त किया था. ब्राह्मण वेश धारी अर्जुन ने स्वयंवर जीता और पांडव द्रौपदी को लेकर अपनी कुटिया की ओर चले तो द्रोपदी का भाई धृष्टद्युम्न चुपके से पीछे लग गया.

मजाक में अर्जुन ने अपनी पत्नी को सुंदरतम भिक्षा बता दिया और बिना देखे ही कुंती ने कुटिया के अंदर से ही कह दिया कि सभी मिलकर उसे ग्रहण करो.

धृष्टद्युमन उन सबको महल लेकर गए तो उन्होंने द्रपुद को बताया कि पांचों उनकी बेटी से विवाह करने जा रहे हैं.

द्रुपद को क्रोध आ गया किंतु इन पांडवों से वह पहले हार चुके थे इसलिए युद्ध का साहस नहीं कर पाए. अब तो बेटी भी उन्हें दे चुके थे. इस चिंता में द्रुपद बीमार हो गए कि यह विधि का कैसा खेल है.

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व्यास मुनि को खबर हुई और वे द्रुपद के पास आए.  एकांत पाकर द्रुपद से व्यास मुनि ने कहा- राजन आपका उहापोह मैं समझ रहा हूं. आपकी शंका के निवारण हेतु ही दैवयोग से उपस्थित हुआ हूं. आप इसे प्रभु इच्छा समझकर स्वीकार करें.

व्यास मुनि ने कहा- हे महाराज द्रुपद आप अपनी शंका और शोक त्याग दें. द्रोपदी के पति ये पांच पांडव और कोई नहीं शापित इंद्र हैं. द्रौपदी भी इसी प्रकार की आत्मा है.

द्रुपद के अनुरोध पर व्यासजी ने उन्हें कथा सुनानी शुरू की.

एक बार पांच इन्द्र बहुत अहंकारी बन गए. वह किसी का सम्मान नहीं करते थे. एकबार तो उन्होंने रूद्र का भी अपमान कर दिया. रूद्र उनपर क्रोधित हो गए. रूद्र ने उन्हें शाप दे दिया कि उन्हें देवत्व का अहंकार हो गया है इसलिए तुम पांचों को धरती पर मानव-रूप धारण करना होगा और सांसारिक कष्टों को भोगना होगा.

रुद्र ने कहा- तुम मानवरूप में क्रमश: धर्म, वायु, इन्द्र तथा दोनों अश्विनीकुमारों के अंशरूप में जाओगे. भूलोक पर तुम्हारा विवाह स्वर्गलोक से उतरी लक्ष्मी के मानवी रूप से होगा. वह मानवी द्रौपदी है.

व्यासजी बोले-  रुद्र ने उन पाचों को शाप दिया लेकिन पांचों के विवाह के लिए अलग-अलग पत्नियों का नाम नहीं कहा. इसका भी एक कारण है. वह भी आपको बताता हूं.

द्रौपदी ने इस जन्म में आने से पूर्व भगवान शंकर को प्रसन्न कर वरदान मांगा कि मेरे पति रूपवान, बलवान, बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और धनुर्धर हों. इन गुणों में वे संसार में सर्वश्रेष्ठ हो. उनकी बराबरी करने वाला कोई दूसरा न हो.

द्रोपदी की बात सुनकर भगावन और बोले- पुत्री, इतने सरे गुण एक साथ एक व्यक्ति में तो मिलना संभव ही नहीं. तुम्हें पांच जन्मों में ऐसे पांच पतियों का वरदान दे देता हूं.

पर द्रोपदी नहीं मानीं. वह जिद पर अड़ी रहीं कि एक ही जन्म में उन्हें ऐसे पांच अतुलनीय गुण वाले पति का सुख चाहिए.

महादेव ने पुनः समझाया पर द्रोपदी ने दैवयोग से जिद पकड़ ली थी. महादेव ने कहा- तुम्हारी यही इच्छा तो यही सही. तुमने पांच वर मांगे हैं तो तुम्हारे पांच पति होंगे.

रुद्र द्वारा शापित और धरती पर भेजे गये ये पांचों पांडव उपरोक्त गुण संपन्न इन्द्र ही हैं और द्रौपदी का उन सभी की पत्नी बनना पूर्व नियत है. इसे स्वीकार करें.

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व्यास मुनि द्वारा यह वचन सुनकर द्रुपद को संतोष हुआ. उनके सुझाव पर द्रौपदी का विवाह क्रमश: पांचों पांडवों से कर दिया गया. द्रौपदी पांचाली बन गयी.

द्रोपदी को पांच पति महादेव के आशीर्वाद से मिले थे. और वे पांचों इंद्र के अंश थे. हमारे शरीर की पांच ज्ञानेंद्रियों के प्रतीक हैं वे. महादेव ने प्राणियों में वह गुण स्थापित करने के लिए जो लीला की द्रोपदी ने उसमें एक भूमिका निभाई. द्रोपदी तो महादेव द्वारा रक्षित थी. इस कारण द्रोपदी को पांच पतिव्रताओं में स्थान दिया जाता है.

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