भागवत कथा में व्यासपीठ क्यों बनाई जाती है? भारत भूमि पर जातीय विभाजन को मिटाने का अनूठा प्रयोग है व्यास पीठ. इस कथा को अंत तक पढ़ें भागवत कथा के पीछे का सामाजिक विज्ञान जानकर मन गर्व से फूल जाएगा.
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भागवत कथा शृंखला प्रभु शरणम् एप्प में चल रही है. चतुर्मास अवधि में पूरी भागवत कथा को हम आध्यात्मिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करेंगे. सभी महापुराणों में भागवतमहापुराण की महत्ता इस कारण भी अधिक हो जाती है क्योंकि यह पुराण मोहबंधन से छूटने के मूल संदेश को बार-बार और विविध प्रकार के उदाहरणों से कहता है.
भागवत अद्भुत ग्रंथ है. इसका हर स्कंध आधुनिक विज्ञान के किसी न किसी सिद्धांत को प्रतिपादित करता है. हमारे ग्रंथ ज्ञान-विज्ञान के अद्भुत स्रोत हैं, हमें उन्हें नए दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए.
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अपने पुत्र शुकदेव जी के अल्पायु में गृहत्याग करने और ईशलीला गान के प्रति प्रवृति होते देख स्वयं व्यासजी जैसे परमज्ञानी भी मोहित हो गए थे. महाभारत के युद्ध की विभीषका देख चुके व्यासजी अत्यंत क्षुब्ध थे और मन व्याकुल था तो नारदजी ने उन्हें भागवत कथा रस में डूबने को कहा था. उसी भागवत कथा रस से उनके हृदय को शीतलता मिली थी. प्रसन्नता की बात है कि हमारे देश में भागवत कथा की परंपरा पड़ी है. भागवत पुराण को सरलता से पढ़ने के लिए प्रभु शरणम् एप्प डाउनलोड कर लें. लिंक ऊपर है.
आपने भागवत कथा सुनी होगी या टीवी चैनल पर देखी होगी. वहां पर कथाकार एक ऊंचे आसन पर बैठते हैं और प्रतिदिन कथा से पूर्व विधिवत पूजन होता है. इसे व्यासपीठ कहते हैं. पर क्या कभी यह जाना कि व्यासपीठ क्या है? क्यों बनाई जाती है व्यासपीठ? क्या महत्व है व्यासपीठ का? हमें चीजों को शुरू से जानना चाहिए. किसी भी भागवत कथा में यह बात शायद ही बताई जाती हो. व्यासपीठ की एक बड़ी सुंदर कथा है.
सारे पुराण की कथाएं सूतजी के मुख से क्यों है जबकि पुराणों की रचना तो वेद व्यासजी ने की है. यह एक अद्भुत संयोग है. जातिबंधन को चुनौती देने का वंदनीय उदाहरण और प्रयास. दुख की बात है कि ज्यादातर भागवत कथाकार इस मूलमंत्र को समझ ही नहीं पाते. यदि आपने पुराण पढ़ा हो तो उसमें सूतजी का जिक्र सुनने में आता होगा. या मैं आपको पुराण की कथाएं सुनाते हुए कहता हूं- सूतजी बोले. आपको इस पर हैरानी होती होगी कि जब पुराण वेद-व्यासजी ने लिखे तो फिर सभी पुराण सूतजी के मुख से क्यों सुनाया जाता है.
इसके पीछे की एक सुंदर कथा पद्मपुराण में आती है. सूतजी से तात्पर्य वास्तव में सूत परिवार में जन्मे महर्षि रोमहर्षण और उनके पुत्र उग्रश्रवा से है. भगवान वेद-व्यास के शिष्य महर्षि रोमहर्षण को व्यासजी ने स्वयं व्यासपीठ सौंपी थी.
रोमहर्षण का जन्म सूत जाति में हुआ था. ब्राह्मणी माता तथा क्षत्रिय पिता से उत्पन्न सन्तान को सूत जाति में गिना जाता था. इसका मुख्य काम रथ हांकना घुडसाल संभालना था. इन्हें वेद विद्या ग्रहण करने का अधिकार नहीं था. महर्षि वेद व्यास बहुत ही उदार विचारों के थे. रोमहर्षण को स्तुति पाठ करते देखा. शास्त्रों-पुराणों में उनकी रुचियों को देख व्यास जी ने रोमहर्षण को अपना शिष्य बना लिया.
प्रतिभावान रोमहर्षण ने पुराण विद्या का ऐसा पारायण किया कि उनकी प्रतिभा देकर सभी चमत्कृत हो गए.
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