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सत्यव्रत को यही उचित अवसर लगा अपनी इच्छा पूरी करने का. राजा ने कहा- मेरी स्वर्गलोक में सशरीर जाने की इच्छा है. क्या आप अपनी शक्तियों से मेरे लिए स्वर्ग जाने का मार्ग बना सकते हैं?
विश्वामित्र ने वचन दिया तो पूरा करने में जुटे. उन्होंने स्वर्ग के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाने का काम शुरू कर दिया जिससे सत्यव्रत को सशरीर स्वर्ग भेजा जा सके. विश्वामित्र ने स्वर्ग की सीढ़ी भी तैयार कर ली.
इंद्र आदि देवताओं को चिंता हुई कि यदि स्वर्ग के लिए बनी सीढ़ी से मनुष्य सशरीर स्वर्ग आने लगा तो विधि की व्यवस्था बिगड़ जाएगी. उन्होंने विश्वामित्र के सामने भी अपनी चिंता रखी.
विश्वामित्र ने कहा- इंद्र आप स्वर्ग को लेकर इतने आशंकित क्यों हैं? यदि विचरण के लिए कोई मनुष्य आता है तो वह आपका क्या बिगाड़ेगा. आपकी चिंता है कि आपके मनोरंजन में विघ्न पड़ेगा. देवराज को ऐशो-आराम में नहीं डूबे रहना चाहिए.
विश्वामित्र के साथ देवताओं की काफी बहस हुई लेकिन विश्वामित्र माने नहीं. उन्होंने सत्यव्रत को उस सीढ़ी से स्वर्गलोक तक पहुंचाने का प्रबंध कर दिया. सत्यव्रत ने स्वर्ग में पहला ही कदम रखा था कि इन्द्र ने उन्हें नीचे धकेल दिया.
राजा धरती पर गिर गए और जाकर ऋषि विश्वामित्र को रोते-रोते सारी घटना का वर्णन करने लगे. देवताओं के इस व्यवहार से विश्वामित्र भी क्रोधित हो गए. अंत में स्वर्गलोक के देवताओं ने वार्तालाप करके आपसी सहमति से एक हल निकाला.
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