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कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था. उसके नगर में एक ब्राह्मण रहता था. जिसके चार बेटे थे. लड़के जब तक सयाने हुए तब तक ब्राह्मण दिवंगत हो गया. ब्राह्मणी भी उसके साथ सती हो गयी.
ब्राह्मण-ब्राहमणी के मरते ही उनके रिश्तेदारों ने उनका सारा धन छीन लिया. चारों पुत्रों का कोई आसरा न रहा तो चारों अपने नाना के यहां चले गए. लेकिन कुछ दिन बाद वहां भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा.
सभी ओर से प्रताडित ब्राह्मण किशोरों ने मिलकर सोचा कि अब समय आ गया है कि कोई न कोई विद्या सीखनी चाहिए. विद्या सीखकर कुछ धन कमाया जाए तो ही इस प्रताड़ना से बचा जा सकता है. यह सोच करके चारों चार दिशाओं में चल दिए.
कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर आपस में मिले. एक ने कहा- मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस मज्जा चढाकर ऐसा बना सकता हूं कि वह सजीव सा दिखे. पर कमी बस इतनी है कि उस पर चमड़ा और बाल नहीं उगा सकता.
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