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ब्रह्मा ने विश्वकर्माजी को आदेश दिया कि ब्रह्मांड में उन्हें जो भी वस्तु सुंदर लगती है उन सबका अंश निकालकर लाएं. सभी जीव-निर्जीव में बसे सौंदर्य का अंश तिलभर लेकर आएं. ब्रह्मांड की समस्त सुंदर वस्तुएं तिलभर लाकर विश्वकर्मा ने ब्रह्मा को दे दी. फिर ब्रह्मा ने उन्हें कहा कि देवताओं को शृंगार विधि की रचना में सहयोग करें.
विश्वकर्मा के जाने के बाद ब्रह्मा अपने कार्य में लग गए.
उनका सौंदर्य निहारते हुए ब्रह्मा ने एक स्त्री की कल्पना की. ब्रह्मा ने तिल-तिल भर संसार की सुंदरता को समेटकर एक स्त्री बनाई. इससे अत्यंत सुंदर अप्सरा तिलोत्तमा की उत्पत्ति हुई. उस अद्वितीय सुंदरी अप्सरा का नाम तिलोत्तमा पड़ा. ब्रम्हा ने तिलोत्तमा बताया कि उन्होंने उसकी रचना सुंद-उपसुंद के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए की है.
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योजना के मुताबिक तिलोत्तमा अंतरिक्ष की परिक्रमा करने लगी. एक दिन सुंद स्वर्ग में राज कर रहा था तब उपसुंद पृथ्वी पर फिर आक्रमण करने निकला. तिलोत्तमा स्वर्ग का भ्रमण कर रही थी तब सुंद की दृष्टि उस पर पड़ी. उसने तिलोत्तमा का पीछा करके उसे रोका. उसने तिलोत्तमा का परिचय पूछा.
अप्सरा बोली- मेरा नाम तिलोत्तमा है. मैं एक अप्सरा हूँ. विवाह के लिए पुरुष तलाश रही हूं. मैं संसार के सबसे बड़े वीर की तलाश में हूं जिससे विवाह कर सकूं.
तिलोत्तमा का सौंदर्य ऐसा था कि उससे कोई भी मोहित हो जाए. सुंद ऐसा मौका छोड़ना नहीं चाहता था. वह काममोहित होकर तिलोत्तमा के आसपास मंडराता रहा. तिलोत्तमा ने उससे प्रेम दर्शाकर उसे प्रसन्न किया. तिलोत्तमा के प्रेम में मुग्ध सुंद को नींद आने लगी. वह प्रसन्न मन से गहरी नींद में सो गया.
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उसके बाद तिलोत्तमा पृथ्वी पर आई. वह मानसरोवर तट पर स्नान कर रही थी कि उपसुंद वहां घूमता हुआ पहुंचा. तिलोत्तमा का सौंदर्य देखते ही वह मतवाला हो गया. तिलोत्तमा वस्त्रहीन थी इसलिए वह जल के अंदर समा गई. उपसुंद ने उसे वस्त्र दिए जिसे पहनकर वह बाहर आई.
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