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आंखें खोलीं तो भगवान श्रीराम माता सीता और भैया लक्ष्मण के साथ साक्षात खड़े थे. सुतीक्ष्णजी को दुगनी प्रसन्नता थी. एक तो प्रभु के दर्शन मिले दूसरी गुरुदक्षिणा पूर्ण करने का समय आ गया.

उन्होंने प्रभु को प्रणाम किया. भगवान ने उन्हें अविरल भक्ति का वरदान दिया. सुतीक्ष्ण गुरूजी को गुरुदक्षिणा देने हेतु सीतारामजी को लेकर गुरु-आश्रम की ओर चले.

सुतीक्ष्णजी ने प्रभु से कहा- प्रभु आप बाहर ही प्रतीक्षा करें. मैं गुरूजी को सूचना देकर लिवा लाता हूं. अगस्त्य के आश्रम द्वार पर श्रीरामजी एवं सीता माता आज्ञा की प्रतीक्षा में खड़े हो गए.

सुतीक्ष्ण ने गुरू के चरणों में दंडवत करके विनम्र भाव से कहा- गुरुदेव ! मैं गुरुदक्षिणा देने आया हूं. सीताराम जी द्वार पर खड़े आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

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