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उसके शरीर से दिव्य तेज निकल रहा था. यही बालक आदित्य और मार्तण्ड आदि नामों से प्रसिद्ध हुआ. आदित्य वन-वन जाकर देवताओं को एकत्रित करने लगा.

आदित्य के तेजस्वी और बलशाली स्वरूप को देख इन्द्र आदि देवता अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने आदित्य को अपना सेनापति नियुक्त कर दैत्यों पर आक्रमण कर दिया.

आदित्य के तेज के समक्ष दैत्य नहीं टिक पाए और शीघ्र ही उनके पैर उखड़ गए. अपनी जान बचाने के लिए वे भागकर पाताल लोक में छिप गए.

सूर्यदेव के आशीर्वाद से स्वर्ग लोक पर फिर से देवताओं का अधिकार हो गया. सभी देवताओं ने आदित्य को जगत पालक और ग्रहों के अधिपति के रूप में स्वीकार किया.

सृष्टि को दैत्यों के अत्याचारों से मुक्तकर आदित्य भगवान सूर्य के रूप में ब्रह्माण्ड के मध्य भाग में स्थित हो गए और वहीं से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्य-संचालन करने लगे.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम्

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