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अदिति और कश्यप को व्याकुल देखकर उन्होंने चिंता का कारण पूछा. अदिति बोलीं-“देवर्षि! दैत्यों ने युद्ध में मेरे पुत्रों को पराजित कर दिया है. इन्द्र और अऩ्य देवता वन-वन भटक रहे हैं. उनकी रक्षा करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा.

अदिति का कथन सुनकर नारदजी बोले- माता अभी केवल, सूर्य ही शक्ति ही अक्षुण्ण रह गई है. इस संकट से बचने का मुझे तो केवल एक ही रास्ता नजर आता है. आप उपासना करके भगवान सूर्य को प्रसन्न करें और उनसे पुत्र रूप में प्रकट होने का वर मांग लें.

सूर्यदेव के तेज से ही दैत्य पराजित हो सकते हैं. वह देवों के भाई हो जाएंगे. अपने भाइयों की रक्षा करना और उनका खोया हुआ सम्मान दिलाना उनका दायित्व हो जाएगा. अदिति को सूर्य की तपस्या के लिए प्रेरित कर नारद चले गए.

अपनी संतान के कल्याण के लिए अदिति कठोर तप करने लगीं. अनगनित वर्षों के तप के पश्चात भगवान सूर्यदेव साक्षात प्रकट हुए और अदिति से मनोवांछित वरदान मांगने को कहा.

अदिति ने भगवान सूर्य की स्तुति की और उनसे विनती की कि वह पुत्र के रूप में उनके घर में जन्म लेकर अपने सहोदर भाइयों की रक्षा करें.

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