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जब भगवान श्रीराम अपने धाम को चले उस समय उनके साथ अयोध्या के सभी पशु- पक्षी, पेड़-पौधे मनुष्य भी उनके साथ चल पड़े. उनमें सीताजी की निंदा करने वाला धोबी भी था.
भगवान ने उस धोबी का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उनको अपने साथ लिए चल रहे थे. जिस-जिस ने भगवान को जाते देखा वे सब भगवान के साथ चल पड़े. कहते है कि वहां के पर्वत भी उनके साथ चल पड़े.
सभी पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, पर्वत और मनुष्यों ने जब साकेत धाम में प्रवेश करना चाहा तब साकेत का द्वार खुल गया पर जैसे ही उस निंदनीय धोबी ने प्रवेश करना चाहा तो द्वार बंद हो गया.
साकेत द्वार ने भगवान से कहा- महाराज! आप भले ही इसका हाथ पकड़ लें पर यह जगतजननी माता सीताजी की निंदा कर चुका है. इसका पाप इतना बड़ा है कि मैं इसे साकेत में प्रवेश की अनुमति नहीं दे सकता.
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