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एक बार माता सीता स्नान करने के बाद शृंगार कर रही थीं. तभी बजरंग बली वहां आ पहुंचे.
हनुमानजी को माता ने अशोक वाटिका में अपने पुत्र का दर्जा दिया था इसलिए उनके लिए कहीं आने जाने पर रोक-टोक न थी.
माता ने सभी शृंगार के बाद अपनी मांग में सिंदूर लगाया. हनुमानजी ने देखा कि जब माता सिंदूर लगा रही थीं, उस समय उनके चेहरे की चमक जितनी अधिक थी उतनी किसी अन्य आभूषण पहनते समय नहीं थी.
हनुमानजी को आश्चर्य हुआ. आखिर इस रंगीन चूर्ण में ऐसा क्या है जो माता इसे धारण करते समय दिव्य रत्नों वाले आभूषणों से भी ज्यादा इतरा रही हैं.
उन्होंने यह प्रश्न माता से पूछ भी लिया. सीताजी हंसने लगीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या उत्तर दें.
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