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श्री सीताराम धाम वंदना
श्रीतुलसीदासजी ने ऋषि मुनियों की वंदना के बाद श्रीसीतारामजी, उनके कुल, भाइयों उनके नगर और सहायकों की भी वंदना की है. प्रेम भाव से भरकर तुलसी ने सबके चरणों में अपना धाम तलाशा है.
चौपाई :
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥1॥
भावार्थ:- मैं अति पवित्र श्री अयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली सरयू नदी की वन्दना करता हूँ. फिर अवधपुरी के उन नर-नारियों को प्रणाम करता हूं, जिन पर प्रभु श्रीरामचन्द्रजी की ममता बहुत है.
सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए॥
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥2॥
भावार्थ:- श्रीरामजी ने अपने नगर में ही रहने वाले और सीताजी की निंदा करने वाले धोबी और अन्य लोगों के पापों का नाशकर उन्हें शोकरहित बनाया और अपने धाम में बसा दिया. मैं कौशल्या रूपी पूर्व दिशा की वन्दना करता हूं, जिसकी कीर्ति समस्त संसार में फैल रही है.
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