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भगवान के पश्चात नारदजी भी स्नान करने के लिये सरोवर में उतरे. वे नहा कर बाहर निकले तो उन्होंने अपने को दिव्य कन्या के रूप में पाया जो हर प्रकार से सुंदर व शुभ लक्षणों से सम्पन्न थी.

भगवान तत्काल अन्तर्धान हो गए. कन्या ने अपने के अकेले पाया. वह भयभीत हो इधर-उधर देख ही रही थी कि अपनी सेनाओं के साथ राजा तालध्वज वहाँ पहुंचा.

सुन्दरी को देख कर राजा बोला- तुम कौन हो, कहाँ से आयी हो? देवी हो या अप्सरा? कन्या ने कहा- मेरे माता-पिता नहीं हैं. न मेरा विवाह हुआ है,कोई आश्रय नहीं है, अब आपकी ही शरण में हूँ.

राजा खुश हुआ उसे साथ ले कर राजधानी पहुँचा, उससे विवाह कर लिया. विवाहोपरांत शीघ्र ही वह गर्भवती हुई और एक तुंबी यानी लौकी को जन्म दिया.

इस लौकी में बीचसमान पचास छोटे-छोटे दिव्य शरीर वाले बालक थे जो बहुत बलशाली और युद्ध की कला में पारंगत थे. इन सब को घी से भरे एक बहुत बड़े कुंड में छोड़ दिया गया.

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