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सतीजी ने श्रीहरि से शरीर त्यागने से पहले आशीष मांगा कि हर जीवन और स्वरूप में उन्हें महादेव का साथ ही मिले. श्रीहरि के आशीर्वाद से सतीजी पुनः पर्वतराज हिमवान की पत्नी मैना के गर्भ से प्रकट हुई हैं.
हिमवान से मिलने नारदजी आए हैं. हिमवान के अनुरोध पर नारदजी ने पार्वतीजी का भविष्य बांचा है. उन्हें समस्त सौभाग्य और सद्गुणों से युक्त बताया है किंतु उनका पति गुणहीन, मानहीन, जटाधारी, योगी और अमंगल वेषधारी होगा. हिमवान और मैना अपनी पुत्री का भाग्य जानकर दुखी हैं.
चौपाई :
सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी। दुख दंपतिहि उमा हरषानी॥
नारदहूँ यह भेदु न जाना। दसा एक समुझब बिलगाना॥1॥
नारदजी का कथन सुनकर और उसे हृदय में सत्य जानकर हिमवान और मैना को बहुत दुःख हुआ परंतु पार्वतीजी प्रसन्न हुईं. नारदजी भी इस रहस्य को नहीं जान सके क्योंकि सबकी बाहरी दशा एक सी होने पर भी भीतरी समझ अलग-अलग थी.
सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना। पुलक सरीर भरे जल नैना॥
होइ न मृषा देवरिषि भाषा। उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा॥2॥
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Very informative. Thanks.
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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