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भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी हरिवर्मा के पास पहुंचे और वरदान मांगने को कहा. हरिवर्मा बोला- भगवन आप तो सर्वज्ञ हैं. आपसे क्या छुपा. अपने जैसा एक तेजस्वी और वीरपुत्र प्रदान करें.

श्रीहरि बोले- तुम अभी सुपर्णाक्ष क्षेत्र में चले जाओ. वहां मेरा एक पुत्र तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है. स्वयं लक्ष्मीजी उसकी जननी हैं. उसकी उत्पति तुम्हारे लिए ही हुई है. उसे ग्रहण करो.

हरिवर्मा प्रसन्न हो गया. उसने भगवान के बताए मुताबिक पुत्र को प्राप्त किया. उसकी पत्नी पुत्र प्राप्त करके बहुत प्रसन्न हुई. धूमधाम से उसका जनमोत्सव मनाया गया.

हरिवर्मा को पता था कि उसका पुत्र स्वयं परमात्मा और देवी लक्ष्मी का अंश है. यानी इसके जोड़ का कोई भी बालक हो नहीं सकता. इसलिए उसने अपने पुत्र का नाम रखा एकवीर.

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