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प्रजापति दक्ष के यज्ञ में श्रीविष्णु शिवगणों से क्यों भिड़े? युद्ध किया भी तो आखिर शिवगणों से वह पराजित भी कैसे हो गए? ऐसे प्रश्न अक्सर शिवभक्तों और हरिभक्तों के मन में आते हैं.मुझसे कई बार लोगों ने यह प्रश्न किया है.
इसका उत्तर शिव पुराण में मिलता है. आज वह प्रसंग सुनाता हूं. वैसे महादेव शिव शंभू एप्प में शिवपुराण की सरल व्याख्या कथा की शृंखला इसी सप्ताह से आरंभ हो रही है. यदि शिव पुराण पढ़ना है तो MAHADEV SHIV SHAMBHU एप्प प्ले स्टोर से डाउनलोड कर लें. चलिए कथा की ओर बढ़ते हैं.
नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी से पूछा- हे परमपिता! दक्ष के यज्ञ में शिवजी का अपमान हुआ था इसलिए माता सती ने स्वंयं को योगाग्नि में भस्म किया. उसके बाद भृगु ने यज्ञरक्षक उत्पन्न कर शिवगणों पर प्रहार भी किया.
श्रीहरि स्वयं वहां उपस्थित थे. श्रीहरि से बड़ा शिवभक्त तो संसार में कोई नहीं फिर उन्होंने महादेव का अपमान होते देख कैसे लिया? फिर शिवजी के भेजे गणों से श्रीहरि ने युद्ध ही क्यों किया और क्यों पराजित भी हुए?
यह प्रश्न मुझे बार-बार व्यग्र कर रहा है. इसका उत्तर देकर तत्काल मेरी इस जिज्ञासा को शांत करने की कृपा करें.
नारद के इस प्रश्न पर ब्रह्माजी बोले- हे नारद, शिवगण वीरभद्र के हाथों श्रीविष्णुजी का पराभव हुआ उसके पीछे पूर्वकाल में उन्हें महर्षि दधीचि द्वारा मिला एक शाप था. श्रीहरि ने एक बार राजा क्षुव की सहायता की थी इसलिए दधीचि ने उन्हें ऐसा शाप दिया था.
नारदजी के अनुरोध पर ब्रह्माजी ने कथा सुनानी शुरू की. महातेजस्वी राजा क्षुव और महर्षि दधीचि में गहरी मित्रता थी. दधीचि ब्राह्मण वर्ण को श्रेष्ठ मानते थे तो क्षुव क्षत्रिय होने के कारण क्षत्रियों को श्रेष्ठ ठहराते थे.
एक दिन क्षुव ने दधीचि से कहा- राजा चारों वर्णों के भरण-पोषण की व्यवस्था करता है. उसके प्राण और सम्मान की रक्षा करता है. वह पृथ्वी पर परमात्मा का प्रतिनिधि है. इसलिए श्रेष्ठ है. सो आप मेरे लिए पूज्य नहीं वरन मैं आपके लिए पूज्य हूं.
क्षुव ने वेद विरूद्ध बात कह दी तो दधीचि ने भी क्रोध में भरकर शास्त्रविरूद्ध आचरण प्रदर्शित करते हुए राजा क्षुव के मस्तक पर एक जोरदार मुक्का मार दिया. इससे तिलमिलाए राजा क्षुव ने तत्काल दधीचि के दो टुकड़े कर दिए.
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