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समुद्र मंथन से निकले हलाहल या कालकूट विष से जब संसार जलने लगा और सृष्टि पर संकट आ गया तो संसार के कल्याण के लिए भगवान भोलेनाथ ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया. विष शरीर में न समा जाए इसके लिए माता पार्वती ने भोलेनाथ का कंठ दबाया.

इस तरह विष कंठ में ही स्थिति रह गया और भगवान नीलकंठ हो गए. विष के प्रभाव से प्रभु के शरीर में जलन महसूस हुई तो ब्रह्माजी के सुझाव पर देवों ने उनके मस्तक पर जल डालकर शांत करने की कोशिश की थी. शिवजी को जल अतिप्रिय है. इसीलिए जलाभिषेक किया जाता है.

गंगाजी उनकी जटाओं में वास करती हैं और अमृत बरसाने वाले चंद्रमा मस्तक पर विराजते हैं. संसार में जिसे कोई धारण नहीं कर सकता, जिसका कोई आसरा नहीं बनता, भोलेनाथ उसको प्रेम से स्वीकार कर लेते हैं, इसीलिए वह नाथों के भी नाथ भोलेनाथ हैं.

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