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कोस भर गया था कि इस बीच बाघ ने आक्रमण कर दिया. मैं भयभीत हो भागा और फिर आपने मुझे बचा लिया. अब आप ही पिता की तरह मेरे जीवनदाता और सब कुछ हैं.

बाघ के आक्रमण से धराशायी होने और उसके नीचे आने पर भी कोई चोट न लगने के कारण उस का नाम अकृतव्रण पड़ा. अकृतव्रण के साथ परशुराम भी उसके साथ गए और कुछ समय तक शांत मुनि के आश्रम पर रहे. अकृतव्रण परशुराम का परम शिष्य बन चुका था.
(संदर्भ स्रोत: ब्रह्मांड पुराण)

भगवान परशुराम की कहानी में अकृतव्रण प्रकरण का इसलिए महत्व है क्योंकि संपूर्ण परशुराम चरित में हर स्थान पर अकृतव्रण की भूमिका है. वह साये की तरह उनके साथ रहे हैं. आगे जब राम इतनी सिद्धियां पाकर अपने घर मां पिता के पास पहुंचते हैं.
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