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बहुत दिन तक राजा के न रहने पर सब कुछ गड़बड़ा गया. प्रजा को बहुत कष्ट हुआ. राजा दिवोदास ने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान मांगा कि देवता देवलोक में ही वास करें.
नाग लोक में नाग और पाताल में राक्षस, भूलोक यानी धरती मनुष्यों के रहने के लिये छोड़ दिया जाय. सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने उसे मनचाहा वर देकर कहा कि अब तप छोड़ो शीघ्र वापस राज काज संभालो. तुम्हारी प्रजा बहुत दुखी है.
इससे कलियुग में देवताओं के गुप्त रूप से पृथ्वी पर रहने की योजना गड़बड़ा गयी. उधर शिव जी ने सोचा कि अब फिर काशी चला जाये अब तो उनके द्वारा उत्पन्न अंतिम राजा का समय भी समाप्त हो चुका है.
शिवजी ने काशी जाने से पहले कुछ दूत भेज कर काशी का हाल जानने का निश्चय किया और अपने कुछ दूत काशी भेजे. उधर काशी में दिवोदास ने अपने तपोबल से तमाम देवताओं का रूप ले रखा था.
इस तरह उसने न सिर्फ शासन व्यवस्था बहुत बेहतर कर रखी थी, लोगों को भरमा भी रखा था. शिवदूतों के पूछने पर काशी के लोगों ने कहा- हमारे पालनकर्ता तो बस दिवोदास हैं. हम तो उन्हीं को जानते हैं.
दिवोदास के साथ केवल ब्रह्माजी का दिया वरदान ही नहीं था वह शिवभक्त भी था. तो जब तक दिवोदास काशी स्वयं नहीं छोड़ता शिव वापस काशी नहीं जा सकते थे. दूतों ने यह बात शिवजी को नहीं बताई.
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Very nice story. Prabhu sadev apne bhakto ki rakhsa karte hai. Shiv ji ki priya nagri Kashi or unka Vishwanath swaroop. Jai Maa Anapurna. Jai Vishwapati Vishwanath. Jai Sri Ganesh. Jai Sri Hari.