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एक बार भगवान शिव से मां पार्वती ने कहा कि हिमालय क्षेत्र हमारा मायका है, यहां रहने में बहुत संकोच होता है. आपने तो इसको ही स्थाई निवास बना लिया है. इससे जगहंसाई होती है.
भगवान शिव निवास के लिए उचित स्थान देखने निकले. काशी देखकर उन्होंने पार्वतीजी से कहा- शिवे! अब हम इसी काशीक्षेत्र में ही निवास करेंगे. इस स्थान से हमारा जुड़ाव भी है.
जब तुमने सतीरूप में अपने पिता यज्ञ में स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर लिया था उस समय मैं तुम्हारे शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूमता जब यहां पहुंचा तब तुम्हारा मस्तक टूट कर इसी क्षेत्र में गिरा था.
इससे यह भूमि पवित्र हो गयी. तब से इस भूमि का नाम ‘गौरी मुख तीर्थ’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. प्रलय के समय भी इस ‘गौरी मुख तीर्थ’ का विनाश नही हुआ. हम इसी अविनाशी क्षेत्र में रहेंगे.
काशी क्षेत्र में पहुंच शिव बोले- पार्वती तुम अन्नपूर्णा का रुप धारण कर के लोगों के भोजन की व्यवस्था करो, मैं जीवों के उद्धार के लिए लोगों को अपना परम गुप्त तारक मंत्र का उपदेश देता हूं.
कुछ समय के बाद शिवजी के तारक मंत्रों के प्रभाव से यह स्थान सिद्धिपीठ हो गया तो इस सिद्धिपीठ स्थान का नाम काशी हो गया.मां अन्नपूर्णा की कृपा से यहां कभी कोई भूखा नहीं रहता.
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Very nice story. Prabhu sadev apne bhakto ki rakhsa karte hai. Shiv ji ki priya nagri Kashi or unka Vishwanath swaroop. Jai Maa Anapurna. Jai Vishwapati Vishwanath. Jai Sri Ganesh. Jai Sri Hari.