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यह बात सुनकर हिमवान तो प्रसन्नता से फूले न समाए. उन्होंने कहा कि देवकार्य में उनका कोई सहयोग तो इससे अच्छा क्या है. सभी देवता भगवती की एकस्वर से स्तुति करने लगे. हिमवान भी स्तुति कर रहे थे. प्रसन्न हो देवी ने दर्शन दिए.

देवों ने प्रार्थना की- हे मां आपने ब्रह्माजी के अऩुरोध पर दक्षपुत्री के रूप में अवतार लेकर हमारे कष्टों का नाश किया था. उसी प्रकार आप हिमवान के घर में जन्म लेकर हमारे कष्टों का अंत करें एवं सनकादि के दिए शाप को भी पूर्ण करें.

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! आप निश्चिंत होकर अपने लोक को लौट जाएं. मैंने जब देहत्याग किया तब से कामजयी होने के उपरांत भी मेरे नाथ को मेरा वियोग है. वह मुझसे यथाशीघ्र पुनर्मिलन चाहते हैं. अतः मैं मेना के गर्भ से अवतार लूंगी.

यह कहकर देवी अदृश्य हो गईं. ब्रह्माजी इतनी कथा सुनाने के बाद चुप हो गए. उनके मुख से इतनी कथा सुनने के बाद नारद की उत्सुकता बढ़ गई. उन्होंने आगे की कथा सुनाने की इच्छा कही.

ब्रह्माजी ने कहा- देवों ने गिरिराज और मेना को तपस्या करके देवी की आराधना का सुझाव दिया. पति-पत्नी दोनों ने सत्ताइस वर्षों तक देवी की अखंड साधना की. फिर देवी प्रसन्न हुईं और उन्होंने दर्शन दिए.

रूद्र संहिताः पार्वती खंड. कथा क्रमशः जारी रहेगी…

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संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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2 COMMENTS

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