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श्रीहरि ने उन्हें कुछ दिन विष्णु लोक में ही रहने को कहा. इसी बीच मेरे मानस पुत्र सनकादि सिद्ध ऋषि आए. विष्णुजी के कहने पर वे भी विष्णुलोक में ही ठहर गए. सनकादि बालरूप में रहते हैं. परंतु सबके द्वारा वंदनीय हैं.

सनकादि को देखकर तीनों ने उनका अभिवादन तक न किया, प्रणाम तो बहुत दूर की बात है. उनका अपमान हुआ. शांत रहने वाले सनकादि दैवयोग से क्रुद्ध हो गए. उन्होंने तीनों बहनों को मानव स्त्रीरूप में पृथ्वी पर जाने का शाप दे दिया.

तीनों बहनों द्वारा क्षमा मांगने और अनुनय-विनय पर सनकादि ने शाप में संशोधन कर दिया. वे बोले- सबसे बड़ी बहन हिमालय की पत्नी बनकर एक कन्या को जन्म देगी. उससे स्वयं शिवजी विवाह करेंगे.

धन्या नामवाली मंझली बहन का विवाह राजा जनक से होगा. वह स्वयं महालक्ष्मी को जन्म देंगी जिससे श्रीहरि अवतार श्रीराम का विवाह होगा. तीसरी कलावती द्वापर के अंतिम भाग में वृषभानु से विवाह करके राधा नामक कन्या को जन्म देंगी जिसे श्रीकृष्ण वरण करेंगे.

ब्रह्माजी बोले- यह कहकर सनकादि ऋषि वहां से अंतर्धान हो गए. तीनों बहनेंजो शाप से दुखी थीं वे अब इठलाने लगीं कि प्रभु की माया से उन्हें कितना बड़ा गौरव प्राप्त होने वाला है. मेना से विवाह करके हिमवान सुख से रहने लगे.

एक दिन विष्णुजी के नेतृत्व में सभी देवता हिमवान के घऱ पहुंचे. हिमवान ने आवभगत करके आगमन का कारण पूछा. देवों ने कहा- गिरिराज दक्षकन्या सती कोई और नहीं स्वयं जगदंबा उमा ही थीं. आप सती को अपने घर में पुनः अवतार लेने की सहमति दें.

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2 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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