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वे मुझे ले कर महाज्ञानी वर्ष के पास गये. वर्ष ने सारी विद्यायें और वेद आदि मुझे सिखा दीं. व्याडि ने इनको दो बार और इंड्रदत्त ने तीन बार रट कर याद कर लिया.
इस पूरे मामले से व्याडि प्रसिद्ध हुये तो वर्ष का नाम चमक उठा. राजा नंद ने उसकी तारीफ सुनी और उसे बुलावा भेजा. बहुत सा धन देकर सम्मानित किया.
वर्ष से प्राप्त विद्यायें और व्याडि तथा इंद्रदत्त को सिखाने में हुए अभ्यास के कारण मेरी भी गणना पाटिलीपुत्र के विद्वानों में होने लगी. मुझे राज नंद ने अपना मंत्री बना लिया.
परिचय जानने के बाद उसने शिवजी की कथा सुनने का अनुरोध किया. यह अगली पोस्ट में…
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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