शिव-पार्वती रोचक कथा शृंखला की यह छठी कथा है. हमने पहले भी एक कथा प्रकाशित की थी. पूरी कथा के लिए देखें एप्प- Mahadev Shiv Shambhu.
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पिछली कथा से आगे…
गुणाढ्य ने भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को सुनाई गयी जिस कथा को कानभूति से सुनकर पैशाची भाषा में लिखी थी उसका जो थोड़ा सा हिस्सा सातवाहन को मिला, कथा बहुत विशाल है. कथा का आरंभ इस प्रकार है
किसी समय में वत्स नाम का एक सुंदर देश हुआ करता था. कौशाम्बी उस देश की सबसे सजी-धजी नगरी थी. वत्स का राजा शतानीक था. वह पांडव के वंश में पैदा हुआ था.
शतानीक की कोई संतान नहीं थी. इस दुख से दुखी होकर शांडिल्य मुनि के आश्रम में गया तो उन्होंने उसकी रानी विष्णुमति को मंत्र फूंक कर एक कटोरा खीर खाने को दी. खीर खाने से रानी को एक बेटा हुआ.
बेटे का नाम सहस्रानीक रखा गया. एक बार शतानीक इंद्र के बुलावे पर अपने मंत्री सुप्रतीक और सेनापति युगंधार को राज काज का अधिकार देकर देव-असुर संग्राम में लड़ने चले गये.
इस संघर्ष में शतानीक वीरगति पा गए तो सहस्रानीक गद्दी पर बैठा. इंद्र ने उसे स्वर्ग बुलाया. स्वर्ग में वह अप्सराओं के साथ देवताओं को आज़ादी से रमण करते देखा तो उसका नारी के प्रति आकर्षण बढ गया.
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