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पिछली कथा से आगे…

शिकारी के मुंह से इस खरी-खरी सुनकर राम को बहुत अचरज हुआ. एक नीच कर्म करने वाला व्याध आखिर मां की हत्या से लेकर अब तक की गयी तपस्या के बारे में कैसे जानता है. राम ने आश्चर्य से भरकर शिकारी से पूछा- आपका वास्तविक परिचय क्या है?

आप इंद्र, यम, अग्नि, वरुण, कुबेर, ब्रह्मा, सोम अथवा गुरु हैं. पर मुझे जाने क्यों ऐसा लगता है कि आप भगवान शिव ही हैं जो मेरी परीक्षा लेने आये हैं. आपकी वाणी से भी लगता है कि आप शिकारी तो नहीं हो सकते. मैं आपको प्रणाम करता हूं. कृपया वास्तविक रूप में दर्शन दें.

इतना कह कर राम तत्काल पद्मासन लगा कर ध्यान मुद्रा में बैठ गये. शीघ्र ही उन्होंने अपनी सारी इंद्रियों को नियंत्रित किया और हृदय को मन में स्थित कर जो आंखें खोली तो सामने साक्षात भगवान शिव को पाया.

दिल में हर्ष के भाव ऐसे भरे कि आँख से खुशी के आंसू टपक पड़े, वे चरणों में गिर पड़े. साष्टांग प्रणाम के बाद गदगद कंठ से बोले- देवेश्वर आप मुझे अपनी शरण में लीजिये. मैं आप को पहचान नहीं पाया, मेरी गलतियों को क्षमा कर दीजिये.

भगवान शिव बोले- मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं. आप मेरे प्रिय हैं. आपकी कामना जानता हूं. पर आप अभी इन अस्त्रों के धारण करने योग्य नहीं हैं. ये अति रौद्र अस्त्र हैं. आपको इससे भी कठोर तप तथा धरती के सभी प्रमुख तीर्थों में स्नान कर शरीर को पवित्र करने की आवश्यकता है. उसके बाद इन अस्त्रों को प्राप्त कीजिए.
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