Mahadev

जब महादेव की क्रोधाग्नि में कामदेव भस्म हो गए. उस क्षेत्र में स्थिति सभी जीव-जंतु वनस्पतियां समाप्त हो गईं किंतु उस अग्नि से देवी पार्वती का कोई अनिष्ट नहीं हुआ.

क्रोध के कारण भीषण नाद हुआ जिससे डरकर हिमवान भी वहां आए. महादेव के रौद्ररूप से आक्रांत पार्वती उस समय तो वहां से अपने पिता के पास चली गईं किंतु प्रलंयसृदृश भाव उनके मन को व्यथित करता रहा.

कामदेव का दाह करके महादेव अदृश्य हो गए थे. अत: उनके विरह से पार्वती अत्यंत व्याकुल हो उठी थीं. मेरे स्वरूप को धिक्कार है जो महादेव को जरा भी प्रिय नहीं हुआ. ऐसा कहती वह महादेवजी का चिन्तन किया करती थीं.

एक दिन इंद्र की प्रेरणा से नारदजी हिमालय पर्वत पर आए. शैलराज हिमवान ने उनसे पार्वती के मन के शोक की बात बताई और राह पूछा तो नारदजी ने उन्हें महादेव का ध्यान करने को कहा.

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