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कुछ दिनों बाद एक तेली हाथ-पैर विहीन विका को अपने घर ले गया और उसको कोल्हू पर बिठा दिया. विका अपनी जबान से बैल हांकने का काम करने लगा. इस दौरान राजा पर आई शनि की दशा का काल समाप्त हो गया. अपंग विका वर्षा ऋतु के आरंभ पर मल्हार राग गाने लगा. उसके गीत पर राजा की बेटी मनभावनी मोहित हो गयी. राजकन्या ने राग गाने वाले की खबर लाने के लिए अपनी दासी को भेजा.
दासी सारे शहर में घुमती रही. जब वह तेली के घर के निकट से निकली तो उसने देखा कि विका मल्हार गा रहा था. दासी ने लौटकर राजकुमारी को सारा वृतांत सुना दिया. बस उसी क्षण राजकुमारी ने यह निश्चय कर लिया कि चौरंगिया विका भले ही अपंग हो किंतु वह उससे ही विवाह करेगी.
राजकुमारी ने खाना-पीना छोड़ दिया. रानी के पूछने पर उसने अपना निर्णय बता दिया. राजकुमारी ने जब रानी को बताया कि वह चौरंगिया से विवाह करना चाहती है तो उसने बेटी को समझाया. लेकिन वह सुनने को राजी न थी. रानी ने राजा को बात कह सुनाई. महाराज ने भी समझाने की कोशिश की. तो राजकुमारी ने कहा- “पिताजी, मै अपने प्राण त्याग दूंगी पर किसी दूसरे पुरुष से विवाह नहीं करुँगी. ” राजा हारकर उस विवाह के लिए राजी हो गया.
राजकुमारी का विवाह चौरंगिया के साथ हो गया. रात को जब विक्रमादित्य और राजकुमारी महल में सोए थे तब शनिदेव ने विक्रमादित्य को स्वप्न दिया और कहा कि राजा मुझे छोटा बतलाकर तुमने कितना दुःख उठाया. राजा ने शनिदेव से क्षमा मांगी. शनिदेव ने राजा को माफ कर दिया और प्रसन्न होकर विक्रमादित्य को हाथ-पैर दे दिए. राजा विक्रमादित्य ने शनिदेव से प्रार्थना की कि जैसा दुःख उन्हें दिया है, वैसा किसी को भी न दें.
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