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शनिदेव की दृष्टि पड़ने से गणेशजी का मस्तक छिन्न हो गया था. शीशविहीन पुत्र के शोक में दुखी पार्वती माता ने शनिदेव को अंग-भंग होने का शाप दे दिया.

बाद में श्रीहरि आदि देवताओं ने देवी को अहसास कराया कि शनिदेव की गलती नहीं है तो उन्होंने शनिदेव को कई वरदान दिए.

शाप को समाप्त तो नहीं कर सकती थीं लेकिन उन्होंने उसमें थोड़ा सुधार कर दिया. उन्होंने कहा शनि आप अपंग न होकर अंग बाधित हो जाएंगे.

शिवजी को प्रसन्नकर रावण अपार शक्तियों का स्वामी बन बैठा. वह सभी देवों को परास्तकर उनको अपमानित करने लगा.

रावण का अहंकार इतना बढ़ गया था कि अपने पुत्र मेघनाथ को अपराजेय और सर्वशक्तिमान बनाने के लिए सभी उसने ग्रहों को मेघनाथ के जन्म के समय उच्च राशि में स्थापित होने का आदेश दिया.

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