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इस बीच एक दिन दुर्वासा कण्व के आश्रम में आए और उन्होंने शकुंतला को पुकारा. दुष्यंत के ख्यालों में खोई शकंतुला को सुनाई न पड़ा. दुर्वासा ने कई बार पुकारा. क्रोधित होकर उन्होंने शाप दे दिया कि जिसके ख्यालों में हो वह तुम्हें भूल जाएगा.
शकुंतला ने ऋषि के पांव पकड़ लिए तो उन्होंने क्षमा करते हुए कहा कि यदि तुम उसकी कोई निशानी उसे दिखाओगी तो उसे तुम्हारा स्मरण आएगा और तुम्हें आदर-सत्कार के साथ अपने हृदय में रखेगा.
शकुंतला गर्भवती थी. उसनें गर्भावस्था के लक्षण दिखाई पड़ रहे थे लेकिन दुश्यंत नहीं आए. ॠषि कण्व और शकुंतला परेशान हो गए. उन्होंने सोचा कि शकुंतला को ही महल में भेज देते हैं.
राजा दुष्यंत की दी हुई अंगूठी के साथ कण्व ॠषि ने शकुंतला को एक नाव में बैठाकर राजा के पास भेज दिया. होनी को कुछ और ही मंजूर था. नदी पार करते समय शकुंतला की अंगूठी पानी में गिर गई और एक मछली ने उसे निगल लिया.
शकुंतला को इसका ध्यान ही न रहा. जब दुष्यंत के राजदरबार पहुंची तो शाप के प्रभाव से दुष्यंत को कुछ भी याद न आया. शकुंतला ने अनेक प्रसंग याद दिलाये लेकिन कोई लाभ न हुआ.
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