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कण्व ऋषि वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने कन्या को देखा तो उस पर उन्हें बड़ा प्रेम आया. वह उसे अपने साथ आश्रम लेकर आए और पिता के समान पालन-पोषण किया.
एक दिन उस प्रदेश का राजा दुष्यंत शिकार के लिए आए और भटकते-भटकते कण्व के आश्रम तक आ गए. वह कण्व के दर्शन के लिए आश्रम आए लेकिन कण्व नहीं थे.
शकुंतला उनके लिए जल लेकर आई. स्वर्ग की अप्सरा मेनका की पुत्री के रूप पर दुष्यंत रीझ गए. शकुंतला को भी उनमें प्रेम हो गया. दुष्यंत ने शकुंतला से विवाह का प्रस्ताव रखा.
दोनों ने कण्व ॠषि की अनुपस्थिति में गंधर्व विवाह कर लिया. कुछ समय तक शकुंतला के पास रूककर दुष्यंत यह वादा कर लौटे कि शकुंतला को जल्द ही सामाजिक रीति से ब्याह कर ले जाएंगे.
जाते समय राजा ने शकुंतला को अपनी अंगूठी देकर कहा कि इसे संभाल कर रखना इसे देखते ही मैं तुम्हें पहचान लूंगा. दुश्यंत राजधानी पहुंचकर राजकाज की उलझन में फंस गए.
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